माँ के हाथ का बना थैला पर्यावरण का संरक्षक

थैले अधिकतर पुराने कपड़ों से बनाये जाते थे पुरानी पैंट का थैला सबसे बड़ा और सबसे मजबूत  होता था जिसका उपयोग भारी और बड़े सामानों के लिये किया जाता था कहीं कहीं इन थैले में गेंहूँ पिसवाया जाता था बाकी पीपे में गेहँू पिसवाया जाता था दूध दही घी, तेल, मठा, के लिये भी पैसों के साथ बर्तन हाथ में दिया जाता था। अलग-अलग उपयोग के लिये टिफि न के साइज का थैला तैयार किया जाता था ताकि उसके अन्दर टिफिन खने पर टिफि न टेड़ा न हो। साग भाजी लाने वाला थैला, मटन मछली लाने के लिये अलग थैला अस्तर लगा हुआ कढ़ाई और कलर लगा हुआ थैला जिन घरों में सिलाई मशीन नहीं होती थी वहां माता-बहिनें हाथ से सिलकर थैला तैयार करती थी,



संपन्न परिवारों में जब कोई सामान मंगवाया जाता था तब माँ या मालकिन अपने परिवार जन को या सेवक को पैसा निर्देश के साथ-साथ, घर से बना हुआ थैला भी हाथ में थमाती थी। यह सुविधा भी सम्रांत परिवारों डाक्टर इंजीनियर वकील व्यापारी व्याख्याता अध्यापक आदि परिवारों तक सीमित थी इससे नीचे के परिवारों  के पास थैले भी नहीं होते थे वे पोटली या टोकरा टोकरी से काम चलाते थे। थैले अधिकतर पुराने कपड़ों से बनाये जाते थे पुरानी पैंट का थैला सबसे बड़ा और सबसे मजबूत  होता था जिसका उपयोग भारी और बड़े सामानों के लिये किया जाता था कहीं कहीं इन थैले में गेंहूँ पिसवाया जाता था बाकी पीपे में गेहँू पिसवाया जाता था दूध दही घी, तेल, मठा, के लिये भी पैसों के साथ बर्तन हाथ में दिया जाता था। अलग-अलग उपयोग के लिये टिफिन के साइज का थैला तैयार किया जाता था ताकि उसके अन्दर टिफिन खने पर टिफिन टेड़ा न हो। साग भाजी लाने वाला थैला, मटन मछली लाने के लिये अलग थैला अस्तर लगा हुआ कढ़ाई और कलर लगा हुआ थैला जिन घरों में सिलाई मशीन नहीं होती थी वहां माता-बहिनें हाथ से सिलकर थैला तैयार करती थी, अलग-अलग थैले दुकानदार भी कागज की पुडिय़ा लिफाफों या दोनों में समान देते थें 60 के दशक तक किराना, कपड़ा, होटल हलवाई, डेयरी, मेडिकल स्टोर, सब्जी आदि में पोलिथिन का उपयोग कदापि नहीं था। बाजार में कपड़े और त्रिपाल के बने थैले भी बिकते थे नेतागण साइड में लटकाने वाले कपड़े, सूती और खादी के थैले उपयोग करते थे। आज पोलिथिन में सामान लेकर लेना और देना शान बन चुका है 50 ग्राम धनिया मिर्ची से लेकर गेहूँ दाल, चावल, आटा सभी पोलीथिन में मिलता है छोटी से सब्जी की दुकान वाले से लेकर बड़े-बड़े शोरूम में पोलिथिन का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। दैनिक उपयोग में यदि हम कपड़े के थैलों का उपयोग करें बाजार कपड़े का थैला लेकर जायं तब दैनिक उपयोग में आने वाले पोलिथिन से जो कि मिट्टी भी कभी नष्ट नहीं होती और मिट्टी की उर्वरक क्षमता पेड़ पौधों को बढऩे की क्षमता को रोकता है नालियों में जाकर उनको चौक करना पशु उसे खाकर बीमार पड़ते है कई बार मृत्यु भी हो जाती है। जलाशयों में जाकर जल को दूषित करता है आज अपनी माँ को श्रृद्धा सुमन अर्पित करते हुए धरती माँ को विनाश से बचाने का संकल्प लेने की आवश्यकता है।