अंतरजातीय विवाह भविष्य में बाधक

यदि आप अंतर जातीय विवाह कर भी लेते हें तभ भी आपको परिवार से आपका समाज संस्कृति  आपको कभी मान्यता नहीं देगाी कोई भी समाज वर पक्ष का बापू पक्ष आपको कभी सहयोग नहीं करेगा बल्के आपके कार्यालय आपके मोहल्ले या शहर वाले भी आपसे सिर्फ दूरी बनाये रखेंगे  बल्कि 2-4 पीढ़ी तक यह कलंक समाप्त नहीं होगा और चर्चा होती रहेगी की इसकी दादी/नानी या नाना अन्य समाज से थे। बच्चे और बच्चों के बच्चे तक शादी विवाह के मामले में सवाल उठाते रहेंगे। कई पीड़ी तक बच्चों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। आप कितने सम्पन्न एवं शक्तिशाली व्यक्ति क्यों न हो आपको सुख-दुख समाज की आवश्यकता अवश्य होगी उसके बिना कुछ नही हो सकता हमे अपनी भारतीय परंपरा धर्म संस्कृति के अनुसार ही अपने सहपाठी या सहकर्मी से निश्चित दूरी रखते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करें एवं । सजातीय विवाह कर जीवन का ईश्वर द्वारा प्रदान अपार सुखों का लाभ उठायें। सजातीय विवाह में आपके माता-पिता, सास-ससुर, बहन-बहनोई, भाई-भाभी, देवर-देवरानी, साला-साले की पत्नि, साली-साली का आदमी ये कुछ रिश्ते ऐसे है ये पुत्र-पुत्री, भतीजे-भान्जे आपके हर सुख दुख में खबर मिलते ही तुरंत आपकी यथा संभव सहायता के लिये तैयार रहेंगे। विशेषकर साला और बहनोई आपका मित्र कितना भी प्रिय हो कितना भी अच्छा व्यक्ति हो आपके परिवार को निश्चित दूरी बनाकर ही रखना पड़ेगा पारिवारिक कार्यों कर्म काड़ों में पारिवारिक लोगों की आवश्यकता ही होगी।



सजातीय विवाह में परांपरा गत कार्यों रीति-रिवाजों खान-पान आदि की समानता दोनों परिवारों में होने के कारण आगे जीवन यापन व्यवसाय आदि में सरलता होती है। व्यावसायिक परिवार से आने वाली बहू का व्यवसाय से संबंधित बहुत सारी जानकारी सुनने-सुनते, देखते-देखते हो जाती है। कच्चा माल कहाँ-कहाँ से आता है तैयार माल कैसे बिकता हैं किन पार्टियों सेे उधार लिया जाता है किन पार्टियों को उधार दिया जाता है। उसके पिता जी एवं माई वही कार्य करते थे ससुर और पति भी वही कार्य करते हैं। व्यवसायिक परिवारों में घर में उपलब्ध धन को खर्च करने का तरीका अलग होता है। मिठाई व्यवसायी शराब व्यसायी, सोनर, लोहार, कृषक परिवारों की महिलाओं को परिवारिक कार्यों की पूरी पूरी जानकारी होने के कारण पति पत्नी एक दूसरे का हाथ बटाते हैं और किसी कारणवश यदि पत्नि को परिवार की जिम्मेदारी सभालना पड़े तो सजातीय होने के कारण उसे काई कटिनाई नहीं होती। सजातीय विवाह में खान-पान, रहन-सहन, समान होने से कोई कठिनाई नहीं होती विशेषकर शाकाहारी  और मांसाहारी कुछ परिवार ऐसे होते है जहाँ लहसुन प्याज का सेवन परिवार में नहीं होता कुछ परिवारों में बिना मांसाहार के भोजन नहीं होता मांसाहारी के परिवार से शाकाहारी बहू आयेगी तब उसके लिये मांसाहारी  भोजन खाना या बनाना कितना कठिन होगा प्रयास भी करेगी तो कितना समय लगेगा इसी प्रकार शाकाहारी परिवार में मांसाहारी बहू के आने पर उसे कठिनाई होगी। और उस परिवार की शाकाहारी बहू का क्या होगा जहाँ मांसाहार के साथ परिवार के योग मदिरा पान भी करते हों और लड़ाई झगड़े में तलवार बंदूक भी लहराते हों। मांसाहारी परिवार एवं मदिरा सेवन करने वाले परिवार की बहू मान लीजिये परिवार में एडजेस्ट भी हो गई कल को उसके सगे संबधी आयेंगे उनका स्वागत सत्कार शाकाहार से बिना मदिरा के किया जायेगा होस्ट और गेस्ट दोनों केा आनंद नहीं आयेगां जबकि भारत में हर गरीब से गरीब और अमीर से अमीर व्यक्ति की यह हार्दिक इच्छा होती है कि वह अपने घर में आये अतिथियों का स्वागत सम्मान अच्छे से अच्छा भोजन परोसकर करें। अत: भारतीय समाज के युवक/युवतियों को भावावेस में फैसला न लेकर सजातीय विवाह कर सामाजिक और पारिवारिक जीवन का आंनद लेना चाहिए और माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची ,बुआ-फूफा, सुभचितंकों को बरसों से संजाये हुए सपनों को साकार कर सभी को आनंदित एवं भाव विभोर करते हुए आर्शीवाद लेना चाहिए।